दुद्धी, सोनभद्र (एम.एस.अंसारी)। स्थानीय कस्बे व आसपास के ग्रामीण अंचलों में मुहर्रम पर्व की तैयारियां शुरू हो गई है। कर्बला व चौकों की साफ-सफाई के काम में लोग मशगुल हो गए हैं। ताजिया स्थापित होने वाले चौकों पर बकरीद त्योहार बीतने के दूसरे दिन से ही मोहर्रम के ढोल-ताशे बजाकर लाठी-डंडा, तलवार, गड़ासा से युध्द कला प्रदर्शन अभ्यास शुरू हो गए हैं।
बुधवार 19 तारीख को चांद नजर आने की दशा में 10 दिनों तक मोहर्रम का कार्यक्रम संपन्न कराया जाएग। पांचवी तारीख को नगर के साह चौके की मिट्टी कोड़ाई व केला कटाई, सप्तमी की शाम कर्बला पर भारी संख्या में महिला-पुरुष अकीदतमंद पहुंच फातेहा दिलाते हैं। रात में समस्त चौकों की मिट्टी कोड़ाई व केला कटाई का कार्यक्रम संपन्न कराया जाता है। अष्टमी को छोटी ताजिया व नवमी को बड़ी ताजिया चौकों पर स्थापित की जाती है। दशमी को कर्बला में ताजिया दफन होती हैं। नगर के जुगनू चौक पर सबसे बड़ी ताजिया बनाई जाती है। दुद्धी कस्बे में खजूरी में चार, कलकली बहरा में 3, रामनगर में दो, वार्ड नंबर 11 में 3, मलदेवा गांव में तीन, जुगनू चौक पर दो, साह चौक व मीर मोहल्ला पर 1-1, दुमहान गांव से 9 तथा मन्नत वाले कुल 7-8 ताजिया मिलाकर कुल लगभग छोटी बड़ी 30-35 ताजिया हो जाती है। इसके अलावा खजूरी की दो रामनगर की एक सीपड़ भी मुहर्रम के अष्टमी व नवमी के जुलूस में शामिल होती है। मोहर्रम के जुलूस में कुल 60 जगहों से छोटे बड़े अलम झंडे आते हैं।
कस्बे के वरिष्ठ उस्ताद अलीरजा हवारी ने बताया कि आज से 14 सौ साल पहले इराक में एक याजीद नाम का एक जालिम बादशाह जो इंसानियत का दुश्मन था। खुद को मुसलमानों का रहनुमा मानता था। उसके अंदर दुनिया की हर बुराई भरी हुई थी। वह चाहता था कि इमामे हुसैन अपना रहनुमा हमें मान लें। इमाम हुसैन को यह मंजूर नहीं था। उन्होंने अत्याचार जुल्म के खिलाफ आवाज उठाया तो यजीद को नागवार लगा और उसने इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को कैद कर लिया। 3 दिन भूखा प्यासा रखकर कर कत्ल कर डाला। यजीद ने सोचा कि अब पूरी दुनियां हमें अपना खलीफा तस्लीम करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हुसैन कत्ल होकर भी जीत गए और यजीद जीत कर भी हार गया। इसी याद को ताजा करने के लिए मोहर्रम की 10 तारीख को ताजिया जुलूस निकालकर इमाम हुसैन की याद मनाई जाती है। दुनियां को यह पैगाम दिया जाता है कि जुल्म सहो नहीं बल्कि जुल्म खिलाफ आवाज उठाओ, जीत हक की होती है।