गोवा में उठाया राष्ट्रीय स्तर पर सिंगरौली क्षेत्र में प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्या


आई आई टी कानपुर के जे टी आर सी के राष्ट्रीय कार्यशाला गोवा में दिखाया सोनभद्र में विकास के पीछे का सच
सिंगरौली–सोनभद्र: ऊर्जा की राजधानी अब बीमारियों की घाटी बनी
म्योरपुर/सोनभद्र(विकास अग्रहरि)
सिंगरौली और सोनभद्र के दक्षिणांचल में औद्योगिक विकास के पीछे का सच मंगलवार को गोवा के इंटरनेशनल सेंटर हाल में आयोजित आई आई टी कानपुर के जेटीआरसी के दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में पर्यावरण कार्यकर्ता जगतनारायण विश्वकर्मा और वरिष्ठ पत्रकार आनंद गुप्ता ने संयुक्त रूप से उठाया और वीडियो और फोटो तथा शोध पत्र के जरिए राष्ट्रीय स्तर के मंच पर उठाए हुए बताया कि
देश को रोशन करने वाला क्षेत्र आज खुद बीमारियों के अंधेरे में डूबता जा रहा है सिंगरौली–सोनभद्र, जहाँ हर साल 10.3 करोड़ टन कोयला जलता है, वहाँ से निकलती है 2.82 करोड़ टन राख। यहाँ से देश को मिलती है 21,500 मेगावॉट बिजली, पर इसी बिजली ने इस धरती की साँसें रोक दी हैं।करीब साढ़े तीन सौ उद्योगों के धुएँ और राख ने खेतों, जलस्रोतों और बस्तियों को ढक लिया है। कभी ‘भारत का स्विट्जरलैंड’ कहा जाने वाला यह इलाका अब देश का तीसरा सबसे प्रदूषित क्षेत्र बन गया है।
बीमारियों का अड्डा बनते गाँव जिला अस्पताल रॉबर्ट्सगंज की रिपोर्ट में बताया गया है कि पाँच साल में श्वसन रोगियों में 30% तक वृद्धि हुई है।रेणुकूट और विंध्यनगर के स्वास्थ्य केंद्रों में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और टीबी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।बनवासी सेवा आश्रम के सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि पी एम 2.5 और पी एम10 जैसे प्रदूषकों के कारण हाई ब्लड प्रेशर, हृदयाघात और स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं।
कई मरीजों के बाल, नाखून और रक्त में मरकरी व सीसा की मौजूदगी मिली है। बच्चों में न्यूरोलॉजिकल विकार और महिलाओं में गर्भ संबंधी जटिलताएँ बढ़ रही हैं।ग्रामीण अंचलों में फ्लोराइड युक्त पानी पीने से हजारों लोग प्रभाविकता हो रहे है और सैकड़ों लोग दिव्यांग हो रहे है।गर्भपात,दिव्यागता, कैंसर ,पागल पन बढ़ रहा है। शुद्ध पानी और हवा और मिट्टी प्रदूषित होने से समस्या खड़ी हो रही है।45 फीसदी जंगल क्षेत्र वाले जिले में फलदार वृक्ष ,और लाख विलुप्त हो रहे है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने यहाँ के प्रदूषण पर कई बार सख्त टिप्पणियाँ की हैं।
उसने औद्योगिक इकाइयों को उत्सर्जन नियंत्रण, फ्लाई ऐश निस्तारण और शुद्ध पेयजल आपूर्ति के निर्देश दिए।
‘पोल्यूटर पे सिद्धांत’ के तहत मुआवज़े की भी सिफारिश हुई।
फिर भी ज़मीनी हकीकत यह है कि न प्रदूषण घटा, न लोगों का दर्द।
“जितनी जांचें हुईं, उतने ही आदेश आए — लेकिन कार्रवाई अधूरी रह गई,” स्थानीय लोग कहते हैं।उन्होंने रिहंद और सोन नदियों में औद्योगिक प्रदूषण रोकने के लिए व्यापक अभियान चलाया और गाँव-गाँव जाकर जनजागरूकता फैलाई।
उनके प्रयासों से कई गाँवों में शुद्ध पानी की आपूर्ति और प्रदूषण पर निगरानी की शुरुआत हुई।
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🔹 विशेषज्ञों की राय
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अब यह इलाका जनस्वास्थ्य आपदा की स्थिति में है।
वे सुझाव देते हैं—
🟢 हर 2–3 वर्ष में वैज्ञानिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण हो।
🟢 रियल-टाइम AQI और जल गुणवत्ता डेटा सार्वजनिक किया जाए।
🟢 प्रदूषण प्रभावित इलाकों में विशेष चिकित्सा इकाइयाँ स्थापित की जाएँ।
🟢 उद्योग अपने CSR फंड से स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करें।
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🔹 अंतिम सच
विकास की चमक के पीछे राख से ढकी ज़िंदगियाँ हैं।
लोग कहते हैं“यहाँ अब हवा नहीं, राख साँसों में उतरती है।”अनपरा शक्तिनगर के बीच उड़ती धूल और राख, करोड़ों की सड़क गड्ढे में बदलना सच्चाई इंगित करता है।
नेहरू के सपनों का स्विट्जरलैंड अब बीमारियों की घाटी में बदल गया है।
आई आई टी कानपुर के पूर्व प्रो ए के शर्मा ने कहा कि सिंगरौली की समस्या को राजनैतिक मुदा भी बनाने की जरूरत है ।
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