वाराणसी (जगत भाई)।
सर्व सेवा संघ ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर रेलवे बोर्ड के सदस्य (इंफ्रा) नवीन गुलाटी के बयान को असंगत, तथ्यहीन, असत्य और गुमराह करनेवाला बताया है। नवीन गुलाटी का यह कहना कि गत वर्ष सर्व सेवा संघ से 14 एकड़ जमीन रेलवे ने कब्जा मुक्त कराया है, सरासर झूठा बयान है। लगता है, पूरी प्रशासनिक मशीनरी और राजनीतिक नेतृत्व झूठ और अफ़वाह के बलबूते अपने मनमाने उद्देश्यों को प्राप्त करने पर आमादा है और ऐसा करते वक्त वे कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
नवीन गुलाटी का बयान उस समय आया है जब सर्वोदय के सेवक सर्व सेवा संघ परिसर के पुनर्निर्माण के लिए 100 दिनों का सत्याग्रह कर रहे हैं। हर दिन एक जिले से कम से कम एक सत्याग्रही उपवास पर बैठते हैं। उनका यह बयान असंवेदनशीलता और निष्ठुरता का प्रतीक है।
सर्वविदित और स्थापित तथ्य यह है कि सर्व सेवा संघ ने 1960, 1961 और 1970 में तीन अलग-अलग बैनामे के जरिए नॉर्दर्न रेलवे से वैध प्रक्रिया द्वारा 12.89 एकड़ जमीन खरीदी थी जिसका दाखिल- खारिज कर खतौनी में नाम भी दर्ज हो चुका था। नवीन गुलाटी को बताना चाहिए कि वे 14 एकड़ की बात कहां से कर रहे हैं , जबकि सर्व सेवा संघ का दावा सिर्फ 12.89 एकड़ का ही है।
सर्व सेवा संघ के एक हिस्से में गांधी विद्या संस्थान स्थित है जिसे कमिश्नर ने बल और छलपूर्वक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को सौंप दिया है। इसके रकबे को भी क्या नवीन गुलाटी अपनी योजना में शामिल कर रहे हैं? हालांकि इसे शामिल करके भी 14 एकड़ तो पूरा नहीं होता। नवीन गुलाटी के बयान से सिद्ध होता है कि गांधी विद्या संस्थान को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को सौंपना जमीन हड़पने का एक रणनीतिक हथकंडा भर था। बनारस के कमिश्नर कौशल राज शर्मा ने कुचक्र द्वारा इसे अंजाम दिया है।
इस संबंध में यह बताना भी प्रासंगिक है कि 26 जून 2024 को बनारस के जिलाधिकारी ने अपने दायरे से बाहर जाकर सर्व सेवा संघ की जमीन के बैनामे को अवैध घोषित किया था। जबकि राजस्व नियमों के अनुसार और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि टाइटल डिसाइड करने का अधिकार सिर्फ सिविल न्यायालय को है, जिलाधिकारी को नहीं। यह पूरा मामला सिविल न्यायालय से संबंधित है और सर्व सेवा संघ ने सिविल न्यायालय में इस संबंध में मुकदमा 522/2023 दर्ज कर रखा है जिसकी सुनवाई चल रही है।
किसी भी बड़े अधिकारी से हम गंभीर बातों की अपेक्षा करते हैं। नवीन गुलाटी ने काशी स्टेशन के इर्द-गिर्द जिन योजनाओं की घोषणा की है, वह कोई नई बात नहीं है। क्योंकि इससे पहले ही *प्राइस वाटर कूपर* नाम की एक बहुराष्ट्रीय कंसल्टेंट कंपनी ने *काशी स्टेशन मल्टी मॉडल डेवलपमेंट प्लान* का डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बना चुकी है और मीडिया ने उसे कई बार प्रमुखता से छापा भी है। उल्लेखनीय है कि प्राइस वॉटर कूपर ने अपनी रिपोर्ट में सर्व सेवा संघ की सिर्फ 1.27 एकड़ जमीन अधिग्रहण की बात कही है और वह भी 1970 में खरीदी गई जमीन वाले हिस्से को। इस प्रसंग में तत्कालीन जिलाधिकारी और वर्तमान कमिश्नर कौशल राज शर्मा से मिलकर सर्व सेवा संघ के पदाधिकारियो ने आपत्ति दर्ज कराया था। तब उन्होंने कहा था कि हम सर्व सेवा संघ की इतनी ही जमीन लेंगे, जितना प्रोजेक्ट में चिन्हित किया गया है और उसका उचित मुआवजा भी देंगे। तब सर्व सेवा संघ ने मुआवजे की बात को नकार दिया था।
सर्व सेवा संघ के वैध मालिकाना हक को अवैध कब्जा बताना आचार्य विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ राजेंद्र प्रसाद एवं बाबू जगजीवन राम को लांछित करना है। ये सभी महान व्यक्ति इस जमीन के हस्तांतरण के फैसले और उपयोग में शामिल रहे हैं। इतना ही नहीं विनोबा भावे सर्व सेवा संघ प्रकाशन के उद्घाटन के समय दिसंबर 1960 में स्वयं आए थे और पूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री 1964 में आए थे, और इसे ‘सर्वोदय मंदिर’ (सबके उदय के लिए) कहा था।जय प्रकाश नारायण तो यहीं रहते थे। उन्होंने ही गांधी विचार पर गहरे शोध अध्ययन के लिए गांधी विद्या संस्थान को स्थापित किया था। नव कृष्ण चौधरी, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोइराला, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर , जॉर्ज फर्नांडिस, कर्पूरी ठाकुर, किशन पटनायक, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि राय, नारायण देसाई और दर्जनों मंत्री-सांसद, विधायक और स्वतंत्रता सेनानी यहां रहे व आए। यह एक राष्ट्रीय स्मारक और विरासत है। दुनिया की हर सरकार अपनी विरासत को सहेज कर रखती है लेकिन हमारी सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों द्वारा भारत के नव-निर्माण के लिए निर्मित एक स्मारक को, इतिहास को मिटा दिया है, यह राष्ट्रीय अपराध है। लाल किला और संसद भवन को गिराकर कोई निर्माण का मॉडल नहीं बनाया जा सकता है। सर्व सेवा संघ को गिराकर यहां विकास का कोई मॉडल खड़ा करना, आपराधिक कार्य है।
सर्व सेवा संघ संघ का राजघाट परिसर, वाराणसी प्रशासन एवं रेलवे ने अवैध रूप से 22 जुलाई 2023 को कब्जा किया और 12 अगस्त 2023 को इसके अधिकांश भवनों को ध्वस्त कर दिया जो पूरी तरह अवैध कार्यवाही है। यह पूरा काम किसी भी अदालत के आदेश के द्वारा नहीं हुआ है।
अतः सर्व सेवा मांग करता है कि राजघाट साधना केंद्र परिसर को क्षतिपूर्ति के साथ सर्व सेवा संघ को वापस किया जाए और जो अधिकारी इस षड्यंत्र में शामिल रहे हैं, उन्हें चिन्हित कर दंडित किया जाए।