आईपीएफ की राष्ट्रीय कार्यसमिति मीटिंग में हुआ फैसला
प्रदेश में चलायेंगे रोजगार अधिकार अभियान
लखनऊ। संयुक्त युवा मोर्चा ने 15 जुलाई को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में रोजगार अधिकार के लिए देशव्यापी अभियान चलाने का निर्णय लिया है। ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यसमिति की हुई वर्चुअल मीटिंग में प्रस्ताव पारित कर संयुक्त युवा मोर्चा के रोजगार अधिकार अभियान का समर्थन किया है और उत्तर प्रदेश में अभियान को पुरज़ोर तरीके से संचालित करने का निर्णय लिया है। आईपीएफ की इकाइयों द्वारा अभियान में संवाद, सम्मेलन, बैठकें, आमसभा, हस्ताक्षर संग्रह आदि कार्यक्रम किए जायेंगे। आईपीएफ मुख्य रूप से संयुक्त युवा मोर्चा द्वारा उठाई गई रोजगार अधिकार कानून बनाने जिसमें न्यूनतम मजदूरी पर सभी नागरिकों को सालभर काम की गारंटी व काम न दे पाने पर बेकारी भत्ता, केन्द्र व राज्य सरकारों में खाली पड़े एक करोड़ पदों को पारदर्शी तरीके से तत्काल भरने, आउटसोर्सिंग व संविदा व्यवस्था खत्म करने, रेलवे, पोर्ट, बिजली-कोयला, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे जन हितकारी क्षेत्रों में निजीकरण पर रोक लगाने और रोजगार सृजन के लिए कारपोरेट्स पर संपत्ति व उत्तराधिकार कर लगाने जैसी मांगों के पक्ष में पूरे प्रदेश में अभियान चलायेगा। आईपीएफ के अभियान में किसानों की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की कानूनी गारंटी और मनरेगा का शहरी क्षेत्र तक विस्तार करने, साल भर काम, मजदूरी दरों में बढ़ोतरी व 15 दिनों में भुगतान के मुद्दे को भी पुरजोर ढंग से उठाया जाएगा। इसकी जानकारी आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापुरी ने दी।
बैठक में लिए गए प्रस्ताव में कहा गया कि रोजगार संकट गहराता जा रहा है। इसके बावजूद केंद्र सरकार इसके हल की कौन कहे इस संकट को स्वीकार करने तक के लिए तैयार नहीं है। विपक्षी दलों और उनकी सरकारों द्वारा भी इसके हल करने के ठोस कार्यक्रम का अभाव है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी नीति निदेशक तत्वों व अनुच्छेद 21 की व्याख्या में कहा है कि नागरिकों को गरिमापूर्ण जीवन और इसके लिए रोजगार की गारंटी राज्य का संवैधानिक दायित्व है। यही नहीं रोजगार व संसाधन पर नागरिकों का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 39 व 41 में दिया गया है जिसे सरकारों द्वारा दिया जाना चाहिए।
बैठक में कहा गया कि कारपोरेट परस्त नीतियों के चलते देश में बड़े पैमाने पर असमानता पैदा हो रही है। देश के एक फीसदी लोगों के हाथ में देश की कुल संपत्ति का 40 फ़ीसदी हिस्सा है। दरअसल सार्वजनिक संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों पर सरकारों ने कारपोरेट का नियंत्रण स्थापित कर दिया है जो संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है। संविधान संपदा के केंद्रीकरण पर रोक लगाता है। इसलिए अभियान में प्राकृतिक संसाधनों, सार्वजनिक सम्पत्ति पर जनता के नियंत्रण के सवालों को भी मजबूती से उठाया जायेगा।