आइपीएफ ने मुख्यमंत्री को पत्र भेज की मांग
सोनभद्र। जनपद में वन विभाग द्वारा आदिवासियों के जारी उत्पीड़न पर रोक लगाने और घोरावल तहसील के ग्राम परसौना में आदिवासियों पर लादे मुकदमें वापस लेने की मांग पर आज आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजा। आइपीएफ के प्रदेश संगठन महासचिव दिनकर कपूर ने सीएम को भेजे पत्र में कहा कि जनपद में हजारों आदिवासियों ने अपनी पुश्तैनी जमीन पर अधिकार के लिए वनाधिकार कानून के तहत अपना दावा जमा किया है। इन दावों का विधिक प्रक्रिया अपनाए बिना निस्तारण कर दिया गया था। जिसके विरूद्ध आदिवासी वनवासी महासभा द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गयी थी। जिसमें माननीय मुख्य न्यायाधीश की खण्डपीठ ने 11 अक्टूबर 2018 को दावों के पुनः परीक्षण का आदेश दिया था। इस आदेश में आदिवासी वनवासी महासभा के सदस्य दावाकर्ताओं के उत्पीड़न पर भी न्यायालय ने रोक लगाई थी। इस आदेश के बाद दावों के पुनः परीक्षण की प्रक्रिया प्रारम्भ की गई। यही नहीं वनाधिकार कानून की धारा 4 की उपधारा 5 भी यह कहती है कि जब तक दावों का पूर्ण रूप से निस्तारण न हो जाए तब तक दावाकर्ता की बेदखली नहीं की जायेगी। बावजूद इसके सोनभद्र जनपद के घोरावल तहसील के गांव परसौना में वन भूमि पर पुश्तैनी बसे आदिवासी कोल, गोंड, पनिका और वनाश्रित चमार जाति के लोगों पर वन विभाग द्वारा मुकदमें कायम किए जा रहे है और उन्हें बेदखली की नोटिस देकर उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। इस गांव के करीब 72 आदिवासी व वनाश्रित दावाकर्ताओं पर, जिसमें महिलाएं भी है, मुकदमा संख्या 14153/2022, 11713/2022 और 11714/2022 धारा 5/26 वन अधिनियम 1927 और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की विभिन्न धाराओं में वन विभाग द्वारा मुकदमें कायम किए गए है। जबकि यह सभी लोग आदिवासी वनवासी महासभा के सदस्य है, इन लोगों ने वनाधिकार कानून के तहत दावे किए है और इनके दावे अभी तक निस्तारित नहीं हुए है। इसलिए इनके ऊपर मुकदमें कायम करना और इनकी बेदखली की नोटिस जारी करना विधि के प्रतिकूल है और उत्पीड़न की कार्यवाही है। जो वनाधिकार कानून और हाईकोर्ट के आदेश के विरूद्ध है। ऐसे में सीएम से हस्तक्षेप कर प्रमुख सचिव, वन व पर्यावरण को निर्देश देने की मांग की गई है।
वन विभाग द्वारा आदिवासियों के उत्पीड़न पर लगे रोक
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