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माँ काली ही हैं इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी

सातों शीतला माता के साथ विराजती है मन्दिर में

चैत्र व अश्विन नवरात्रि के समय मन्दिर में होता है विशेष अनुष्ठान,पूजन व अर्चन

दुद्धी-सोनभद्र। कहते हैं माँ आखिर माँ ही होती है, मां की कृपा दया हो तो एक साधारण व्यक्ति भी पारस बन सकता है। अपनी ममता मयी आँचल में सभी का अभिसिंचिन कर सुख समृद्धि धन वैभव शांति सन्तति व बाल गोपाल के सुख से सम्पन्न करने वाली मां काली जी की महिमा बहुत ही न्यारी है।

आइये आज हम आपको दुद्धी के काली मां की महिमा से परिचित कराते हैं। दुद्धी की काली माँ का मंदिर बहुत ही प्राचीन व शक्तिपीठ रूप में हैं।
पूर्व में दुद्धी आदिवासियों का एक प्रमुख केंद्र रहा था। अपने पूर्वजों व ब्राह्मणों की बताई गाथा के अनुसार आज जहाँ मन्दिर है वहाँ पहले केवल एक नीम का पेड़ था,घनघोर जंगल के बीच ये नीम का पेड़ अपनी सुंदरता से सभी को आकर्षित करता था।ग्वालों का झुंड अपने मवेशियों को लेकर अक्सर इधर आते थे।जिस स्थान पर नीम का पेड़ था वहाँ एक गाय हमेशा अपना दूध गिरा देती थी,पर इसकी भनक किसी भी ग्वाले को नही होती थी। एक दिन एक चरवाहे ने देखा कि एक गाय अपना दूध इस नीम के पेड़ के नीचे गिरा रही है तो उसे कुछ कौतूहल लगा। उसने अपने अन्य साथियों की मदद से वहाँ साफ सफ़ाई की तो देखा कि माता रानी सप्त पिंडियों के रूप में वहाँ विराजमान हैं।चरवाहों ने आपसी सहयोग से वही माँ का मंदिर बना कर पूजन प्रारंभ कर दिया। जहाँ माता रानी सप्त पिंडी स्वरूप प्रकट हुई थी आज भी वही हैं बशर्ते केवल वो नीम का पेड़ नही रहा लेकिन उसी नीम पेड़ की शाखा का ही पेड़ आज भी मन्दिर में विराजमान हैं जहाँ माता शीतला का स्थान बना हुआ है।
समय बीतता गया,माँ की कृपा लोगों पर होती गयी और लोग अपनी सहभागिता इस मंदिर के विकास के लिए देते रहे। बाद में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार कर वहाँ माँ काली जी की स्थापना दुद्धी नगर के एक प्रतिष्ठित परिवार के द्वारा करायी गयी। बाद में इसी मंदिर में माँ दुर्गा,माँ शीतला, भैरव नाथ की भी स्थापना की गई ।
धीरे धीरे पूरे क्षेत्र में माँ की कृपा व भक्ति का प्रचार प्रसार बढ़ने लगा। बाद में माता जी के मंदिर का जीर्णोद्धार नगर के लोगों व नगर पंचायत दुद्धी के सहयोग से कराया गया।
बतादें की माँ काली ही इस सृष्टि की प्रथम अधिष्ठात्री पराम्बा जगतजननी हैं। एक रक्तबीज नाम का बहुत ही बलशाली दैत्य हुआ था,उसकी विशेषता यह थी की उसके रक्त की एक बूंद भी पृथ्वी पर गिर जाती तो वहां एक और रक्तबीज उत्पन्न हो जाता था ।एक बार जब पूरे ब्रह्मांड में रक्तबीज का अत्याचार फैल गया तो उसे मारने का कोई उपाय नही दिखा तो सभी देवों ने मिल कर जगतजननी की स्तुति की तब ममतामयी दयामयी माँ ने सभी देवों को आश्वस्त किया कि मैं ही इसे समाप्त कर आप सभी के कष्ट को दूर करूँगी। फिर माँ ने अपने तेज से एक विशेष शक्ति को प्रकट किया और उस शक्ति ने विकराल रूप धारण कर रक्तबीज का वध किया उसके शरीर से निकल कर गिरने वाले रक्त को अपने ज्वाला युक्त खप्पर में ही रोक लेती,अंततः माँ ने रक्तबीज का वध कर सृष्टि को उसके भय से मुक्त किया। रक्तबीज के वध के बाद भी माँ का क्रोध शांत नही हुआ, ऐसा लग रहा था कि वो तो अपने क्रोध की अग्नि से पूरे सृष्टि को ही भष्म कर देंगी। तब कोई उपाय न दिखा तो सभी देवों ने महादेव की शरण ली और उनसे देवी माँ को शान्त करने का निवेदन किया।देवो के आग्रह पर देवाधिदेव महादेव शिव ने एक योजना के तहद माँ शक्ति के बीच रास्ते मे लेट गये।रक्तबीज का वध कर माँ पराम्बा शक्ति अपने क्रोधित स्वरूप लेकर उस युद्ध स्थल पर न जाने किसे खोज रही थी उनके क्रोध की ज्वाला पूरे ब्रह्मांड को निगलने को व्याकुल थी और माँ का क्रोध शांत ही नही हो रहा था कि उसी क्षण माँ का एक पैर शिव जी के सीने से स्पर्शित हुआ और उसी क्षण माँ का क्रोध शांत तो हुआ ही,माँ के मुख से उनकी जिह्वा बाहर निकल गयी। माँ को अपने भूल पर ग्लानि हुई उन्होंने शिव जी से इसके लिए क्षमा मांगी। क्रोधाग्नि व शिव जी को चरण से स्पर्श करने की ग्लानि से उन पराम्बा शक्ति का रंग श्याम(काला) हो गया और यही शक्ति सँसार में माँ काली के नाम से विख्यात हो भक्तो का कल्याण कर रही हैं।इनका रूप सौम्य, दयामयी,क्षमामयी व ममतामयी है। ये तंत्र साधना की प्रमुख देवी हैं। इन्हें दश महाविद्याओं में भी प्रथम माना जाता है।
माँ काली जी सर्वभोग प्रिय देवी हैं, इन्हें श्रद्धा से जो कुछ भी अर्पण किया जाये माँ काली उसे निश्चित स्वीकार करती हैं।
पूर्व के समयों में यहाँ इस मन्दिर पर बलि का प्रावधान था लेकिन अब यहाँ पर बलि प्रथा पूरी तरह से बंद है। इस मन्दिर किसी भी प्रकार की बलि नही होती है।
आज माँ काली का मंदिर बहुत ही सुंदर रूप में है, यहाँ उ०प्र०,झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के अलावा और अन्य प्रांतों से भक्तगणों का आना होता है। माँ अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है भक्तगण भी माता रानी पर पूरी आस्था रखते हुए श्रद्धा पूर्वक सेवा देते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर माँ की सेवा करते हैं।
यहाँ तो वर्ष भर भक्तों का आना जाना लगा होता है लेकिन बासंतिक चैत्र नवरात्रि व शारदीय आश्विन नवरात्रि में विशेष रूप से अत्यधिक भक्तो का आगमन होता है।
इस शक्ति पीठ पर मुंडन,हवन,विवाह,नामकरण,कथा व अन्य धार्मिक सामाजिक संस्कार सम्पन्न होते रहते हैं।
बतादे की पूर्व में इस मंदिर पर भी बलि का विधान था लेकिन बाद में इस प्रथा को बंद कर दिया गया और माँ को नैवेद्य भोग अर्पण किया जाने लगा।
माँ काली जी के मंदिर में प्रतिदिन मंगला आरती,प्रातः व शायं भोग,संध्या आरती होती है। अश्विन नवरात्रि में माँ दुर्गा का पूजा पांडाल सजता है, चैत्र नवरात्रि में भी अनुष्ठान होता है।
वैसे कुछ भी हो माँ काली जी की कृपा सभी भक्तों पर अनवरत होती रहती है। कहा जाता है कि माँ काली जी ही इस प्रकृति की प्रथम आदि शक्ति है,इनकी कृपा से एक साधारण व्यक्ति भी बहुत मूल्यवान हो जाता है।
इस मंत्र के साथ माँ की आराधना कीजिए–
काली काली महाकाली,कालिके परमेश्वरी।
सर्वानंद करे देवि,नारायणि नमोस्तुते।।
हरिओम कात्यायनी विदमहे, कन्याकुमारी च धीमहि,
तन्नो माँ काली प्रचोदयात।।
माँ को लौंग,कपूर,मीठी पूरी,हलवा,चना,बतासा,लाल फूल,तथा शिवजी को चढ़ने वाले सभी पदार्थ प्रिय हैं। वैसे माँ किसी वस्तु की नहीं बल्कि वह तो सिर्फ भाव की ही भूखी हैं, आइये हम सब माँ से सभी के लिए मंगल की कामना करें।
मन्दिर की व्यवस्था में रामलीला कमेटी के महामंत्री व दुर्गा पूजा समिति माँ काली मन्दिर के प्रधान पूजा प्रभारी ने बताया कि जो भी भक्त गण माँ से सच्चे मन से अपनी मनोकामना कहते हैं, माँ उनकी सभी मुरादें व मनोकामना अवश्य पूरी करती है। भक्त गण भी माँ की सेवा में सदैव तन मन धन से समर्पित रहते हैं। हम व्यवस्था कमेटी वाले भी माता रानी के दरबार मे पूरी व्यवस्था का पूरा ध्यान रखते हैं जिससे सभी भक्तों व श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की दिक्कत न होने पाये।हम लोग माँ काली जी की कृपा से मन्दिर पर सभी सुविधाओं को देने का प्रयास करतें हैं।मेरा पूरा विश्वास है कि इस दरबार से जिसने जो भी मांगा उसे वो जरूर मिला, माँ अपने भक्तों के सभी मनोरथ पूर्ण करती हैं।
मन्दिर के पुजारी रिंकू मिश्र ने बताया कि इस मंदिर में माँ का दर्शन मूल स्वरूप के अतिरिक्त माँ नव दुर्गा रूप,माँ नव गौरी रूप,माँ अन्नपूर्णा रूप व देवी माँ के सभी रूपों में दर्शन होता है।

विशेष रिपोर्ट-आलोक अग्रहरि
जय माता दी,जय माँ काली जी

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