धूमधाम से मना गुरुगोविन्द सिंह का प्रकाशोत्सव, शबद कीर्तन का भी हुआ आयोजन
दुद्धी-सोनभद्र। कस्बे स्थित प्राचीन शिवाला गुरुद्वारा परिसर में गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा में दसवें पातशाह श्री गुरु गोविंद सिंह जी का प्रकाश उत्सव बड़े ही धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया साथ ही कीर्तन मंडली के द्वारा सबद कीर्तन का भी आयोजन किया गया जिसमें कीर्तनीयों ने सबद भजन को प्रस्तुत कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। तत्पश्चात गुरुद्वारा में आए हुए सभी श्रद्धालु दर्शनार्थियों को हलवा चने का प्रसाद वितरित किया गया। शब्द कीर्तन के पश्चात गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा के प्रधान सेवादार सरदार अजीत सिंह ने लोकमंगल की कामना के साथ अरदास किया और गुरु महाराज से सभी के मंगलमय जीवन की मंगल कामना की। इसके बाद युवा अग्रहरि समाज के महामंत्री आलोक अग्रहरि ने दसवें पातशाह श्री गुरु गोविंद सिंह जी के जीवनी पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए महत्वपूर्ण बातें लोगों तक पहुंचायी। अपने उद्बोधन में श्री अग्रहरि ने कहा कि
गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु हैं। इतिहास में गुरु गोविंदसिंह एक विलक्षण क्रांतिकारी संत व्यक्तित्व है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार गुरु गोविंद सिंह का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 1666 को हुआ था। अत: इस दिन गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व मनाया जाता है।
गुरु गोविंद सिंह एक महान कर्मप्रणेता, अद्वितीय धर्मरक्षक, ओजस्वी वीर रस के कवि के साथ ही संघर्षशील वीर योद्धा भी थे। उनमें भक्ति और शक्ति, ज्ञान और वैराग्य, मानव समाज का उत्थान और धर्म और राष्ट्र के नैतिक मूल्यों की रक्षा हेतु त्याग एवं बलिदान की मानसिकता से ओत-प्रोत अटूट निष्ठा तथा दृढ़ संकल्प की अद्भुत प्रधानता थी तभी स्वामी विवेकानंद ने गुरुजी के त्याग एवं बलिदान का विश्लेषण करने के पश्चात कहा है कि ऐसे ही व्यक्तित्व के आदर्श सदैव हमारे सामने रहना चाहिए।
गुरु नानक देव की ज्योति इनमें प्रकाशित हुई, इसलिए इन्हें दसवीं ज्योति भी कहा जाता है। बिहार राज्य की राजधानी पटना में गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ था। सिख धर्म के नौवें गुरु तेग बहादुर साहब की इकलौती संतान के रूप में जन्मे गोविंद सिंह की माता का नाम गुजरी था।
श्री गुरु तेग बहादुर सिंह ने गुरु गद्दी पर बैठने के पश्चात आनंदपुर में एक नए नगर का निर्माण किया और उसके बाद वे भारत की यात्रा पर निकल पड़े। जिस तरह गुरु नानक देव ने सारे देश का भ्रमण किया था, उसी तरह गुरु तेग बहादुर को भी आसाम जाना पड़ा।
इस दौरान उन्होंने जगह-जगह सिख संगत स्थापित कर दी। गुरु तेग बहादुर जी जब अमृतसर से आठ सौ किलोमीटर दूर गंगा नदी के तट पर बसे शहर पटना पहुंचे तो सिख संगत ने अपना अथाह प्यार प्रकट करते हुए उनसे विनती की कि वे लंबे समय तक पटना में रहें। ऐसे समय में नवम् गुरु अपने परिवार को वहीं छोड़कर बंगाल होते हुए आसाम की ओर चले गए।
पटना में वे अपनी माता नानकी, पत्नी गुजरी तथा कृपालचंद अपने साले साहब को छोड़ गए थे। पटना की संगत ने गुरु परिवार को रहने के लिए एक सुंदर भवन का निर्माण करवाया, जहां गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ। तब गुरु तेग बहादुर को आसाम सूचना भेजकर पुत्र प्राप्ति की बधाई दी गई।
पंजाब में जब गुरु तेग बहादुर के घर सुंदर और स्वस्थ बालक के जन्म की सूचना पहुंची तो सिख संगत ने उनके अगवानी की बहुत खुशी मनाई। उस समय करनाल के पास ही सिआणा गांव में एक मुसलमान संत फकीर भीखण शाह रहते थे। उन्होंने ईश्वर की इतनी भक्ति और निष्काम तपस्या की थी कि वह स्वयं परमात्मा का रूप लगने लगे।
पटना में जब गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ उस समय भीखण शाह अपने गांव में समाधि में लिप्त बैठे थे। उसी अवस्था में उन्हें प्रकाश की एक नई किरण दिखाई दी जिसमें उसने एक नवजात जन्मे बालक का प्रतिबिंब भी देखा। भीखण शाह को यह समझते देर नहीं लगी कि दुनिया में कोई ईश्वर के प्रिय पीर का अवतरण हुआ है। यह और कोई नहीं गुरु गोविंद सिंह जी ही ईश्वर के अवतार थे।
कस्बे में स्थित गुरुबाग गुरुद्वारा वार्ड नम्बर 2 में भी गुरुमहाराज का अरदास कर लोक मंगल की कामना की गई।
आज के आयोजन पर अधिवक्ता रामपाल जौहरी,रविन्द्र जायसवाल ने भी गुरुमहाराज की महत्ता व उनकी शिक्षा को विस्तार से बताया।
इस अवसर पर अक्षय वर नाथ आढ़ती,भोलानाथ आढ़ती,डॉ विनय,कन्हैया लाल अग्रहरि, पंकज अग्रहरि बुल्लू, मनोज सिंह,वीरेन्द्र अग्रहरि,कल्याण मिश्रा, दीपक शाह,सहित तमाम श्रद्धालु उपस्थित रहे। सबद कीर्तन मण्डली में कल्याण मिश्रा,गोपाल जी,शम्भूनाथ गुप्ता, रामजनम गुप्ता,प्रमोद मद्धेशिया, प्रेमचन्द मिश्रा सहित अन्य सभी सहयोगी उपस्थित रहे।