मुन्ना धांगर का उत्पीड़न दलित आदिवासी समाज का अपमान – आइपीएफ
मास्क न पहन गिरफ्तारी करने वाले एसओ के खिलाफ हो कार्यवाही
मजिस्ट्रेट स्तर की कराई जाए जांच, डीएम को पत्र भेज की मांग
सोनभद्र। पूर्व जिला पंचायत सदस्य और लोकप्रिय नेता मुन्ना धांगर की गिरफ्तारी और रातभर उन्हें थाने में रखकर उत्पीड़ित करना दलित और आदिवासी समाज का अपमान है. जिसके खिलाफ ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, आदिवासी वनवासी महासभा, और धांगर महासभा बड़े पैमाने पर हस्ताक्षर अभियान चलाएगी. जिसमें कोरोना महामारी में बिना मास्क लगाए गिरफ्तारी करने वाले एसओ रामपुर बरकोनिया के खिलाफ कार्रवाई करने और पूरी घटना की जांच की मांग की जाएगी. यह बातें आज डीएम को पत्र भेजने के बाद प्रेस को जारी अपने बयान में ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राज्य कार्यकारिणी सदस्य जीतेंद्र धांगर ने कहीं. उन्होंने बताया कि आज इन्हीं मांगों पर प्रतिवाद पत्र जिला अधिकारी को दिया गया है. जिसकी प्रतिलिपि माननीय मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी को भी आवश्यक कार्यवाही के लिए ईमेल के माध्यम से भेजी गई है.
उन्होंने कहा कि एक तरफ जनपद में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग कोरोना महामारी के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करके खुलेआम कार्यक्रम कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ महज राजनीतिक वैचारिक विरोधियों को सबक सिखाने के लिए उनका उत्पीड़न किया जा रहा है.
पत्र में डीएम को बताया गया कि मुन्ना धांगर जो दलित-आदिवासी समाज के बेहद सम्मानित व्यक्ति हैं, को शिक्षक दिवस के अवसर पटना गांव में बच्चों ने कबड्डी की प्रतियोगिता के समापन पर बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया था. वहां वह बकायदा मास्क लगाए हुए थे, शारीरिक दूरी का पालन करते हुए पुरस्कार वितरण कर रहे थे. उसी समय भाजपा राज्यसभा सांसद के इशारे पर एसओ रामपुर बरकोनिया बिना मास्क लगाए वहां पहुंचे और उन समेत पूर्व प्रधान महेंद्र धांगर और अन्य तीन लोगों को गिरफ्तार कर लाए. अभी भी वहां पुलिस दमन जारी है, घरों में खड़ी हुई मोटरसाइकिल के नंबरों की फोटो खींचकर दर्जनों लोगों का चालान काट दिया गया है, कई लोगों के नाम से और सैकड़ों लोगों की खिलाफ अज्ञात में मुकदमा किया गया है. मुन्ना धांगर को रातभर जमानती धाराएं होने के बाद भी महज सबक सिखाने के लिए पुलिस थाने में रखा गया. जबकि माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि कोरोना महामारी में जो भी सात साल से कम सजा की धाराएं हैं उसमें किसी भी अभियुक्त को जेल ना भेजा जाए और उसे रिहा कर दिया जाए. दरअसल भाजपा सरकार पुलिस और प्रशासन के बल पर विरोध की हर आवाज को कुचल देना चाहती है, जो लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है.
डीएम को भेजे पत्र में मांग की गई कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए प्रशासन और पुलिस का निष्पक्ष रहना बेहद जरूरी है. इसलिए इस पूरे मामले की वह अपने स्तर पर जांच करा लें, ग्रामीणों पर लादे मुकदमों को वापस कराएं और पुलिस को निर्देशित करें कि वह राजनीतिक बदले की भावना से किसी भी व्यक्ति या संगठन के विरुद्ध कार्यवाही ना करें.